Bhagwadgeeta chapter 6 Shlok with meaning in hindi and english, Shreemad Bhagwat geeta chapter 6 | श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 6 आत्म संयम योग |
Chapter 6 of the Bhagavad Gita, titled "Atmasamyoga", is a profound and practical discourse given by Lord Krishna to Arjuna. In this chapter, Lord Krishna imparts spiritual wisdom and guidance on the path of self-realization and yoga.
Bhagwadgeeta chapter 6 verses with meaning |
पढ़िए भगवद्गीता अध्याय 5 अर्थ सहित
- Introduction to Dhyana Yoga: Lord Krishna begins by introducing the concept of Dhyana Yoga, which is the yoga of meditation. He emphasizes the importance of disciplined meditation as a means of attaining spiritual realization and union with the divine.
- Mind Control: Krishna explains that the mind can be a powerful ally or a formidable foe on the spiritual path. He advises Arjuna to control the mind through practice and detachment, as it is often restless and difficult to control.
- Stability of the Yogi: Lord Krishna describes the traits of a perfect yogi. Such a person is steady in his meditation, unmoved by external influences and maintains equanimity in both pleasure and pain.
- Importance of a Suitable Place for Meditation: Krishna emphasizes the need for a clean and quiet place conducive to meditation. He also recommends comfortable postures for meditation.
- Control of senses: Lord Krishna instructs Arjuna to control his senses and keep them away from external distractions. By doing so the mind can be focused inwardly during meditation.
- Role of breath control: The chapter discusses the importance of pranayama, or breath control, as a means of calming the mind and attaining higher states of consciousness. Lord Krishna explains the importance of controlling the breath in meditation.
- Ultimate goal: Krishna reveals the ultimate goal of yoga and meditation, which is to attain union with the Supreme Self (Brahman) and realize one's true nature as the eternal, unchanging and blissful existence.
- Importance of surrender: The chapter also highlights the importance of surrender to the divine will. Lord Krishna encourages Arjuna to offer all his actions to the Lord and perform his duties without worrying about the results.
- Devotion and knowledge: Krishna explains that both the paths of devotion and knowledge ultimately lead to the same attainment. Whether one seeks union with the Divine through love and devotion or through knowledge and self-inquiry, the goal is the same.
भगवद गीता का अध्याय 6, जिसका शीर्षक "आत्मसंयमयोग " है, भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया एक गहन और व्यावहारिक प्रवचन है। इस अध्याय में, भगवान कृष्ण आत्म-साक्षात्कार और योग के मार्ग पर आध्यात्मिक ज्ञान और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
- ध्यान योग का परिचय: भगवान कृष्ण ने ध्यान योग की अवधारणा का परिचय देकर शुरुआत की, जो ध्यान का योग है। वह आध्यात्मिक अनुभूति और परमात्मा के साथ मिलन प्राप्त करने के साधन के रूप में अनुशासित ध्यान के महत्व पर जोर देते हैं।
- मन पर नियंत्रण: कृष्ण बताते हैं कि आध्यात्मिक पथ पर मन एक शक्तिशाली सहयोगी या दुर्जेय शत्रु हो सकता है। वह अर्जुन को अभ्यास और वैराग्य के माध्यम से मन को नियंत्रित करने की सलाह देते हैं, क्योंकि यह अक्सर बेचैन होता है और इसे नियंत्रित करना कठिन होता है।
- योगी की स्थिरता: भगवान कृष्ण एक सिद्ध योगी के लक्षणों का वर्णन करते हैं। ऐसा व्यक्ति अपने ध्यान में स्थिर रहता है, बाहरी प्रभावों से अविचलित रहता है और सुख और दुख दोनों में समभाव बनाए रखता है।
- ध्यान के लिए उपयुक्त स्थान का महत्व: कृष्ण ध्यान के लिए अनुकूल स्वच्छ और शांत स्थान की आवश्यकता पर जोर देते हैं। वह ध्यान के लिए आरामदायक मुद्रा की भी सलाह देते हैं।
- इंद्रियों पर नियंत्रण: भगवान कृष्ण अर्जुन को अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करने और उन्हें बाहरी विकर्षणों से दूर रखने का निर्देश देते हैं। ऐसा करने से ध्यान के दौरान मन को अंदर की ओर केंद्रित किया जा सकता है।
- सांस नियंत्रण की भूमिका: अध्याय मन को शांत करने और चेतना की उच्च अवस्था प्राप्त करने के साधन के रूप में प्राणायाम, या सांस नियंत्रण के महत्व पर चर्चा करता है। भगवान कृष्ण ध्यान में सांस को नियंत्रित करने का महत्व बताते हैं।
- अंतिम लक्ष्य: कृष्ण योग और ध्यान के अंतिम लक्ष्य को प्रकट करते हैं, जो सर्वोच्च स्व (ब्राह्मण) के साथ मिलन प्राप्त करना और शाश्वत, अपरिवर्तनीय और आनंदमय अस्तित्व के रूप में अपने वास्तविक स्वरूप का एहसास करना है।
- समर्पण का महत्व: अध्याय ईश्वरीय इच्छा के प्रति समर्पण के महत्व पर भी प्रकाश डालता है। भगवान कृष्ण अर्जुन को अपने सभी कर्मों को भगवान को अर्पित करने और परिणामों की चिंता किए बिना अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
- भक्ति और ज्ञान: कृष्ण बताते हैं कि भक्ति और ज्ञान के दोनों मार्ग अंततः एक ही प्राप्ति की ओर ले जाते हैं। चाहे कोई प्रेम और भक्ति के माध्यम से या ज्ञान और आत्म-जांच के माध्यम से परमात्मा के साथ मिलन चाहता हो, लक्ष्य एक ही है।
भगवद गीता के अध्याय 6 में, भगवान कृष्ण ध्यान, आत्म-नियंत्रण और आत्म-प्राप्ति के मार्ग पर बहुमूल्य शिक्षा देते हैं। वह आध्यात्मिक ज्ञान की ओर यात्रा में प्रमुख तत्वों के रूप में अनुशासित अभ्यास, आंतरिक शांति और परमात्मा के प्रति समर्पण के महत्व पर जोर देते हैं।
गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – १
श्रीभगवानुवाच अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः।
स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः॥६-१॥
-: अर्थात :-
श्री भगवान कहते हैं – जो पुरुष कर्मफल का आश्रय न लेकर करने योग्य कर्म करता है, वह संन्यासी और योगी है न कि अग्नि या क्रियाओं का त्याग करने वाला॥1॥
-: Meaning in English :-
The Lord says – He who, performs his duty without depending on the fruits of action, he is a recluse and a Yogi; not he who lives without fire or without action.॥1॥
गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – २
यं संन्यासमिति प्राहु र्योगं तं विद्धि पाण्डव।
न ह्यसंन्यस्तसंकल्पो योगी भवति कश्चन॥६-२॥
-: अर्थात :-
हे अर्जुन! जिसको संन्यास कहते हैं, उसी को तुम योग जानो क्योंकि संकल्पों का त्याग न करने वाला कोई भी पुरुष योगी नहीं होता॥2॥
-: Meaning in English :-
O Pandava! Know Yoga to be that which they call renunciation because no one becomes a Yogi who has not renounced desires.॥2॥
गीता छठवाँ अध्याय श्लोक –
आरुरुक्षोर्मुनेर्योगं कर्म कारणमुच्यते।
योगारूढस्य तस्यैव शमः कारणमुच्यते॥६-३॥
-: अर्थात :-
योग में स्थित होने की इच्छा वाले मुनि के लिए योग की प्राप्ति में कर्म करना ही कारण कहा जाता है और योग में स्थित हो जाने पर उन संकल्पों का शांत हो जाना ही उसके कल्याण में कारण कहा जाता है॥3॥
-: Meaning in English :-
For a monk, who wishes to attain to Yoga, action is said to be the means. Once he attained to Yoga, inaction (renunciation of desires) is said to be the means.॥3॥
गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – ३
यदा हि नेन्द्रियार्थेषु न कर्मस्वनुषज्जते।
सर्वसंकल्पसंन्यासी योगारूढस्तदोच्यते॥६-४॥
-: अर्थात :-
जिस काल में वह न तो इन्द्रियों के भोगों में और न कर्मों में ही आसक्त होता है, उस काल में सभी संकल्पों के त्यागी पुरुष को योग में स्थित कहा जाता है॥4॥
-: Meaning in English :-
When a person is not attached to sense-objects and actions, then he, who is without any desire, is said to be established in Yoga.॥4॥
गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – ५
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धु रात्मैव रिपुरात्मनः॥६-५॥
-: अर्थात :-
अपने (विवेक युक्त मन) द्वारा अपना (इस भव-सागर से) उद्धार करे और अपने को अधोगति में न डाले क्योंकि यह मनुष्य स्वयं ही अपना मित्र है और स्वयं ही अपना शत्रु है॥5॥
-: Meaning in English :-
Let a man free himself (from the bondage of this world) by utilizing his rightful mind. Let him not downgrade himself; for he is his friend (if follows as described above) and he is his own enemy (if he does not do so).॥5॥
गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – ६
बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः।
अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत्॥६-६॥
-: अर्थात :-
जिस जीवात्मा द्वारा स्वयं (मन) को जीता हुआ है, वह जीवात्मा स्वयं का मित्र है और जिसके द्वारा अपना मन नहीं जीता गया है, उसके लिए वह शत्रु के सदृश ही आचरण करता है॥6॥
-: Meaning in English :-
One, who has conquered his mind (self) by himself (through proper discrimination), is a friend of himself. And who has not conquered) his mind, (his mind) acts as his own enemy.॥6॥
गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – ७
जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः।
शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः॥६-७॥
-: अर्थात :-
सर्दी-गर्मी, सुख-दुःख और मान-अपमान में जिसने स्वयं को जीता हुआ है, ऐसा पुरुष परमात्मा में सम्यक् प्रकार से स्थित है॥7॥
-: Meaning in English :-
A self-controlled and serene man is established in Supreme Self if he is indifferent to cold and heat, to pleasure and pain; and to honor and disgrace.॥7॥
गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – ८
ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा कूटस्थो विजितेन्द्रियः।
युक्त इत्युच्यते योगी समलोष्टाश्मकाञ्चनः॥६-८॥
-: अर्थात :-
जो (औपनिषदिक) ज्ञान, (आत्म अनुभव रूपी) विज्ञान से तृप्त है, विकाररहित है, इन्द्रियों को जीत चुका है और जिसके लिए मिट्टी, पत्थर और स्वर्ण समान हैं, ऐसे योगी को युक्त कहा जाता है॥8॥
-: Meaning in English :-
The Yogi who is content with knowledge (of Upanishads) and direct experience, is without defects, has conquered his senses and gives equal importance to mud, stone and gold, is said to be connected (to self).॥8॥
गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – ९
सुहृन्मित्रार्युदासीन मध्यस्थद्वेष्यबन्धुषु।
साधुष्वपि च पापेषु समबुद्धिर्विशिष्यते ॥६-९॥
-: अर्थात :-
सुहृद्, मित्र, वैरी, उदासीन, मध्यस्थ, द्वेष्य, बन्धु, धर्मात्मा और पापियों में भी समान भाव रखने वाला अत्यन्त श्रेष्ठ है॥9॥
-: Meaning in English :-
He, who treats the well-wishers, the friends, the foes, the indifferent, the neutral, the hateful, the relatives, the righteous and the sinful equally, excels.॥9॥
गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – १०
योगी युञ्जीत सततमा त्मानं रहसि स्थितः।
एकाकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रहः॥६-१०॥
-: अर्थात :-
मन को वश में रखते हुए, आशा और संग्रह रहित होकर योगी अकेले ही मन को स्वयं (आत्मा) में लगाए॥10॥
-: Meaning in English :-
Let the Yogi regularly try to control his mind without desires and possessions, stay alone and connect his mind with self. ॥10॥
गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – ११
शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मनः।
नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिनकुशोत्तरम्॥६-११॥
-: अर्थात :-
पवित्र स्थान में, क्रमशः कुशा, मृगचर्म और वस्त्र से बने स्थिर आसन की स्थापना कर, जो न अधिक ऊँचा है और न अधिक नीचा;॥11॥
-: Meaning in English :-
At a clean place, make a firm seat using grass, skin of a deer and cloth in that order, which is neither too high nor too low.
॥11॥
गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – १२
तत्रैकाग्रं मनः कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रियः।
उपविश्यासने युञ्ज्या द्योगमात्मविशुद्धये॥६-१२॥
-: अर्थात :-
वहाँ मन को एकाग्र करके, चित्त और इन्द्रियों की क्रियाओं को वश में रखते हुए आसन पर बैठे और अन्तःकरण की शुद्धि के लिए योग का अभ्यास करे॥12॥
-: Meaning in English :-
Sitting on that seat, he should concentrate his mind, control the actions of the mind and the senses, and practice Yoga for the purification of the mind and intellect.॥12॥
गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – १३
समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिरः।
सम्प्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन्॥६-१३॥
-: अर्थात :-
शरीर, सिर और गले को सीधा और स्थिर रखते हुए, अपनी नासिका के अग्रभाग को देखते हुए और अन्य दिशाओं को न देखते हुए॥13॥
-: Meaning in English :-
Holding the body, head and the neck as erect and still, fix his gaze on the tip of his nose, without looking around;॥13॥
गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – १४
प्रशान्तात्मा विगतभी र्ब्रह्मचारिव्रते स्थितः।
मनः संयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्परः॥६-१४॥
-: अर्थात :-
शांत मन वाला, भयरहित, ब्रह्मचारी के व्रत में स्थित, मन को संयम में रखते हुए योगी मुझ में चित्त वाला होकर स्थित रहे॥14॥
-: Meaning in English :-
Serene-minded, fearless, celibate, with restrained mind, should remain still while thinking on Me.14॥
गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – १५
युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी नियतमानसः।
शान्तिं निर्वाणपरमां मत्संस्थामधिगच्छति॥६-१५॥
-: अर्थात :-
नियंत्रित मन वाला योगी इस प्रकार मन को निरंतर मुझ में लगाता हुआ परम आनंद रूपी शान्ति को प्राप्त होता है॥15॥
-: Meaning in English :-
Thus always keeping the mind controlled and fixing on Me, the Yogi, attains to the blissful peace of liberation.॥15॥
गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – १६
नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः।
न चाति स्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन॥६-१६॥
-: अर्थात :-
हे अर्जुन! यह योग न तो अधिक खाने वाले का, न बिलकुल न खाने वाले का, न अधिक शयन करने वाले का और न सदा जागने वाले का ही सिद्ध होता है॥16॥
-: Meaning in English :-
O Arjun! This Yoga is not possible for him who eats too much or who does not eat at all, nor for him who sleeps too much or is always awake.॥16॥
गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – १७
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा॥६-१७॥
-: अर्थात :-
दुःखों का नाश करने वाला यह योग सम्यक् आहार-विहार करने वाले का, कर्मों में सम्यक् चेष्टा करने वाले का और सम्यक् प्रकार से सोने और जागने वाले का ही सिद्ध होता है॥17॥
-: Meaning in English :-
This Yoga which destroys pain, is possible for him whose food and other activities are moderate, whose actions are moderate, whose sleep and waking is moderate.॥17॥
गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – १८
यदा विनियतं चित्तमात्मन्येवावतिष्ठते।
निःस्पृहः सर्वकामेभ्यो युक्त इत्युच्यते तदा॥६-१८॥
-: अर्थात :-
जब नियंत्रित किया हुआ चित्त आत्मा में ही स्थिर हो जाता है, तब सभी भोगों में इच्छा से रहित पुरुष को योगयुक्त कहा जाता है॥18॥
-: Meaning in English :-
When the restrained mind remains still in the Self, then one, without any desires is said to be united with Yoga.॥18॥
गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – १९
यथा दीपो निवातस्थो नेङ्गते सोपमा स्मृता।
योगिनो यतचित्तस्य युञ्जतो योगमात्मनः॥६-१९॥
-: अर्थात :-
जिस प्रकार वायुरहित स्थान में रखे दीपक की ज्योति अचल रहती है, वैसी ही उपमा आत्मा के ध्यान में लगे हुए योगी के नियंत्रित चित्त की कही गई है॥19॥
-: Meaning in English :-
As a lamp in a sheltered spot does not flicker – this has been thought as the simile of a Yogi of controlled mind, practicing Yoga in the Self.॥19॥
गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – २०
यत्रोपरमते चित्तं निरुद्धं योगसेवया।
यत्र चैवात्मनात्मानं पश्यन्नात्मनि तुष्यति॥६-२०॥
-: अर्थात :-
योग के अभ्यास से नियंत्रित चित्त जिस स्थिति में शांत हो जाता है और आत्मा के ध्यान द्वारा आत्मा को देखता हुआ स्वयं में ही सन्तुष्ट रहता है॥20॥
-: Meaning in English :-
When thought is quiescent, restrained by the practice of Yoga; when, seeing the Self by the self, he is satisfied in his own Self.॥20॥
गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – २१
सुखमात्यन्तिकं यत्तद् बुद्धिग्राह्यमतीन्द्रियम्।
वेत्ति यत्र न चैवायं स्थितश्चलति तत्त्वतः॥६-२१॥
-: अर्थात :-
इन्द्रियों से परे, केवल शुद्ध व सूक्ष्म बुद्धि द्वारा ग्रहण करने योग्य अनन्त आनन्द को अनुभव कर यह योगी आत्मा के स्वरूप से विचलित नहीं होता है ॥21॥
-: Meaning in English :-
When he knows that Infinite Joy which, transcending the senses, can be grasped by reason; when, steady (in the Self), he moves never from the Reality;
॥21॥
गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – २२
यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः।
यस्मिन्स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते॥६-२२॥
-: अर्थात :-
जिस लाभ को प्राप्त होकर उससे अधिक दूसरा कोई लाभ नहीं मानता और जिस स्थिति में योगी बड़े से बड़े दुःख से भी दुखी नहीं होता॥22॥
-: Meaning in English :-
When, having obtained it, he thinks no other acquisition superior to it; when, therein established, he is not moved even by a great pain;॥22॥
पढ़िए भगवद गीता अध्याय 7 अर्थ सहित
गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – २३
तं विद्याद्दुःखसंयोग वियोगं योगसंज्ञितम्।
स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णचेतसा॥६-२३॥
-: अर्थात :-
जिसे जान कर दुःख रूपी संसार के संयोग से वियोग हो जाता है, उस योग नाम वाली स्थिति को जानना चाहिए। वह योग उत्साहयुक्त (धीर) चित्त से निश्चयपूर्वक करने योग्य है॥23॥
-: Meaning in English :-
This severance from union with pain, be it known, is called union (Yoga). That Yoga must be practiced with determination and with un-depressed heart.॥23॥
ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे आत्मसंयमयोगो नाम षष्ठोऽध्यायः ॥6॥
Bhagwadgeeta chapter 6 Shlok with meaning in hindi and english, Shreemad Bhagwat geeta chapter 6 | श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 6 आत्म संयम योग |
Comments
Post a Comment