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Bhagwadgeeta chapter 7 verses with meaning

Bhagwadgeeta chapter 7 Shlok with meaning in hindi and english, Shreemad Bhagwat geeta chapter 7 | श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 7 ज्ञान विज्ञान योग|

The seventh chapter of the Bhagavad Gita is known as "Jnana Vigyan Yoga". 

In this chapter, Lord Krishna tells Arjuna that there is nothing except Him. Those who worship Him in whatever form, attain Him. Lord Krishna begins by explaining that He is both the material and spiritual cause of the universe. He is both the effect and the destruction. In Chapter 7 of the Bhagavad Gita, Lord Krishna gives profound teachings about the nature of divinity, the importance of devotion and the significance of true knowledge. It serves as a foundational text for understanding the philosophical and spiritual aspects of Hinduism and provides valuable insights into the pursuit of self-realization and spiritual knowledge.

भगवद गीता का सातवां अध्याय "ज्ञानविज्ञानयोगो" के नाम से जाना जाता है। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को 

बताते हैं की उनके अलावा कही भी कुछ नहीं है | जो उन्हें जिस रूप में पूजते हैं उन्हें उसकी प्राप्ति हो जाती है | भगवान कृष्ण यह समझाते हुए शुरू करते हैं कि वह ब्रह्मांड के भौतिक और आध्यात्मिक कारण दोनों हैं। प्रभाव और प्रलय दोनों वही हैं | भगवद गीता के अध्याय 7 में, भगवान कृष्ण देवत्व की प्रकृति, भक्ति के महत्व और सच्चे ज्ञान के महत्व के बारे में गहन शिक्षा देते हैं। यह हिंदू धर्म के दार्शनिक और आध्यात्मिक पहलुओं को समझने के लिए एक मूलभूत पाठ के रूप में कार्य करता है और आत्म-प्राप्ति और आध्यात्मिक ज्ञान की खोज में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

पढ़िए भागाद्गीता अध्याय 6 अर्थ सहित 

Bhagwadgeeta chapter 7 Shlok with meaning in hindi and english, Shreemad Bhagwat geeta chapter 7 | श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 7 ज्ञान विज्ञान योग|
Bhagwadgeeta chapter 7 verses with meaning

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गीता सातवाँ अध्याय श्लोक – १

श्रीभगवानुवाच मय्यासक्तमनाः पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रयः ।

असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु ॥७-१॥

: अर्थात :

श्री भगवान बोले- हे पार्थ! अनन्य प्रेम से मुझमें आसक्त चित तथा अनन्य भाव से मेरे परायण होकर योग में लगे हुए तुम जिस प्रकार से सम्पूर्ण विभूति, बल, ऐश्वर्यादि गुणों से युक्त, सबके आत्मरूप मुझको संशयरहित जानोगे, उसको सुनो॥1॥

-: English Meaning :-

The Lord says – With the mind intent on me, O Partha, practicing Yoga and finding refuge in Me, how in full without doubt thou shall know Me, that do thou hear.


गीता सातवाँ अध्याय श्लोक – २

ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषतः ।

यज्ज्ञात्वा नेह भूयोऽन्यज् ज्ञातव्यमवशिष्यते ॥७-२॥

-: अर्थात :  :-

मैं तुम्हारे लिए इस विज्ञान सहित तत्व ज्ञान को सम्पूर्णतया कहूँगा, जिसको जानकर संसार में फिर और कुछ भी जानने योग्य शेष नहीं रह जाता॥2॥

-: English Meaning :-

I shall fully teach thee this knowledge combined with experience, which being known, nothing more besides here remains to be known.


गीता सातवाँ अध्याय श्लोक – ३

मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये ।

यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्त्वतः ॥७-३॥

-: अर्थात :  :-

हजारों मनुष्यों में कोई एक मेरी प्राप्ति के लिए यत्न करता है और उन यत्न करने वाले योगियों में भी कोई एक मेरे परायण होकर मुझको तत्व से अर्थात यथार्थ रूप से जानता है॥3॥

-: English Meaning :-

Among thousands of men, one per chance strives for perfection; even among those who strive and are perfect, only one per chance knows me in truth.


गीता सातवाँ अध्याय श्लोक – ४

भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च ।

अहंकार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ॥७-४॥

-: अर्थात :  :-

पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार भी- इस प्रकार ये आठ प्रकार से विभाजित मेरी प्रकृति है। यह आठ प्रकार के भेदों वाली तो अपरा अर्थात मेरी जड़ प्रकृति है और हे महाबाहो! इससे दूसरी को, जिससे यह सम्पूर्ण जगत धारण किया जाता है, मेरी जीवरूपा परा अर्थात चेतन प्रकृति जानो॥4-5॥

-: English Meaning :-

Earth, water, fire, air, ether, thought (Manas) and reason (Buddhi), egoism (Ahamkara) – thus is My Prakriti divided eight-fold.


गीता सातवाँ अध्याय श्लोक – ५

अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम् ।

जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत् ॥७-५॥

-: अर्थात :  :-

-: English Meaning :-

This is the inferior (Prakriti); but distinct from this know thou My superior Prakriti, the very life, O mighty-armed, by which this universe is upheld.


गीता सातवाँ अध्याय श्लोक – ६

एतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय ।

अहं कृत्स्नस्य जगतः प्रभवः प्रलयस्तथा ॥७-६॥

-: अर्थात :  :-

हे अर्जुन! तुम ऐसा समझो कि सम्पूर्ण भूत इन दोनों प्रकृतियों से ही उत्पन्न होने वाले हैं और मैं सम्पूर्ण जगत का प्रभव तथा प्रलय हूँ अर्थात्‌ सम्पूर्ण जगत का मूल कारण हूँ॥6॥

-: English Meaning :-

Know that all beings have their birth in these. So, I am the source and dissolution of the whole universe.


गीता सातवाँ अध्याय श्लोक – ७

मत्तः परतरं नान्य त्किंचिदस्ति धनंजय ।

मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव ॥७-७॥

-: अर्थात :  :-

हे धनंजय! मुझसे भिन्न दूसरा कोई भी परम कारण नहीं है। यह सम्पूर्ण जगत सूत्र में सूत्र के मणियों के सदृश मुझमें गुँथा हुआ है॥7॥

-: English Meaning :-

There is naught else higher than I, O Dhananjaya; in Me all this is woven as clusters of gems on a string.

गीता सातवाँ अध्याय श्लोक – ८

रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययोः ।

प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु ॥७-८॥

-: अर्थात :  :-

हे अर्जुन! मैं जल में रस हूँ, चन्द्रमा और सूर्य में प्रकाश हूँ, सम्पूर्ण वेदों में ओंकार हूँ, आकाश में शब्द और पुरुषों में पुरुषत्व हूँ॥8॥

-: English Meaning :-

I am the rapidity in water, O son of Kunti. I am the light in the moon and the sun. I am the syllable Om in all the Vedas, sound in ether, humanity in men.


गीता सातवाँ अध्याय श्लोक – ९

पुण्यो गन्धः पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ ।

जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु ॥७-९॥

-: अर्थात :  :-

मैं पृथ्वी में पवित्र (शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध से इस प्रसंग में इनके कारण रूप तन्मात्राओं का ग्रहण है, इस बात को स्पष्ट करने के लिए उनके साथ पवित्र शब्द जोड़ा गया है।) गंध और अग्नि में तेज हूँ तथा सम्पूर्ण भूतों में उनका जीवन हूँ और तपस्वियों में तप हूँ॥9॥

-: English Meaning :-

And I am the agreeable odour in the earth and the brilliance in the fire, the vitality in all beings and I am the austerity in ascetics.


गीता सातवाँ अध्याय श्लोक – १०

बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम् ।

बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम् ॥७-१०॥

-: अर्थात :  :-

हे अर्जुन! तुम सम्पूर्ण भूतों का सनातन बीज मुझको ही जानो। मैं बुद्धिमानों की बुद्धि और तेजस्वियों का तेज हूँ॥10॥

-: English Meaning :-

Know Me, O Partha, as the eternal seed of all beings; I am the intelligence of the intelligent, the bravery of the brave.


गीता सातवाँ अध्याय श्लोक – ११

बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम् ।

धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ ॥७-११॥

-: अर्थात :  :-

हे भरतश्रेष्ठ! मैं बलवानों का आसक्ति और कामनाओं से रहित बल अर्थात सामर्थ्य हूँ और सब भूतों में धर्म के अनुकूल अर्थात शास्त्र के अनुकूल काम हूँ॥11॥

-: English Meaning :-

And of the energetic I am the energy devoid of passion and attachment; and in (all) beings I am the desire unopposed to Dharma, O lord of the Bharatas.


गीता सातवाँ अध्याय श्लोक – १२

ये चैव सात्त्विका भावा राजसास्तामसाश्च ये ।

मत्त एवेति तान्विद्धि न त्वहं तेषु ते मयि ॥७-१२॥

-: अर्थात :  :-

और भी जो सत्त्व गुण से उत्पन्न होने वाले भाव हैं और जो रजो गुण से होने वाले भाव हैं, उन सबको तुम ‘मुझसे ही होने वाले हैं’ ऐसा जानो, परन्तु वास्तव में (गीता अ. 9 श्लोक 4-5 में देखना चाहिए) उनमें मैं और वे मुझमें नहीं हैं॥12॥

-: English Meaning :-

And whatever beings are of Sattva or of Rajas or of Tamas, know them to proceed from Me; still, I am not in them, they are in me.


गीता सातवाँ अध्याय श्लोक – १३

त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभिः सर्वमिदं जगत् ।

मोहितं नाभिजानाति मामेभ्यः परमव्ययम् ॥७-१३॥

-: अर्थात :  :-

गुणों के कार्य रूप सात्त्विक, राजस और तामस- इन तीनों प्रकार के भावों से यह सारा संसार- प्राणिसमुदाय मोहित हो रहा है, इसीलिए इन तीनों गुणों से परे मुझ अविनाशी को नहीं जानता॥13॥

-:English Meaning :-

Deluded by these three (sorts of) things composed of gunas, this entire world knows not Me as distinct from them and immutable.


गीता सातवाँ अध्याय श्लोक – १४

दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया ।

मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते ॥७-१४॥

-: अर्थात :  :-

क्योंकि यह अलौकिक अर्थात अति अद्भुत त्रिगुणमयी मेरी माया बड़ी दुस्तर है, परन्तु जो पुरुष केवल मुझको ही निरंतर भजते हैं, वे इस माया को उल्लंघन कर जाते हैं अर्थात्‌ संसार से तर जाते हैं॥14॥

-: English Meaning :-

Verily this Divine Illusion of Mine, made up of gunas, is hard to surmount. Whoever seeks Me alone, they cross over this Illusion.


गीता सातवाँ अध्याय श्लोक – १५

न मां दुष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः ।

माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिताः ॥७-१५॥

-: अर्थात :  :-

माया द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, ऐसे आसुर-स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले मूढ़ लोग मुझको नहीं भजते॥15॥

-: English Meaning :-

Not Me do the evil-doers seek, the deluded, the vilest of men, deprived of wisdom by Illusion, following the ways of the Demons.


गीता सातवाँ अध्याय श्लोक – १६

चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन ।

आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ ॥७-१६॥

-: अर्थात :  :-

हे भरतवंशियों में श्रेष्ठ अर्जुन! उत्तम कर्म करने वाले अर्थार्थी (सांसारिक पदार्थों के लिए भजने वाला), आर्त (संकटनिवारण के लिए भजने वाला) जिज्ञासु (मेरे को यथार्थ रूप से जानने की इच्छा से भजने वाला) और ज्ञानी- ऐसे चार प्रकार के भक्तजन मुझको भजते हैं॥16॥

-: English Meaning :-

Four kinds of virtuous men worship Me, O Arjuna – the distressed, the seeker of knowledge, the seeker of wealth and the wise man, O lord of the Bharatas.


गीता सातवाँ अध्याय श्लोक – १७

तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिर्विशिष्यते ।

प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रियः ॥७-१७॥

-: अर्थात :  :-

उनमें नित्य मुझमें एकीभाव से स्थित अनन्य प्रेमभक्ति वाला ज्ञानी भक्त अति उत्तम है क्योंकि मुझको तत्व से जानने वाले ज्ञानी को मैं अत्यन्त प्रिय हूँ और वह ज्ञानी मुझे अत्यन्त प्रिय है॥17॥

-: English Meaning :-

Of them the wise man, ever steadfast and devoted to the One, excels; for, excessively dear am I to the wise and he is dear to Me.


गीता सातवाँ अध्याय श्लोक – १८

उदाराः सर्व एवैते ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम् ।

आस्थितः स हि युक्तात्मा मामेवानुत्तमां गतिम् ॥७-१८॥

-: अर्थात :  :-

ये सभी उदार हैं, परन्तु ज्ञानी तो साक्षात्‌ मेरा स्वरूप ही है- ऐसा मेरा मत है क्योंकि वह मद्गत मन-बुद्धिवाला ज्ञानी भक्त अति उत्तम गतिस्वरूप मुझमें ही अच्छी प्रकार स्थित है॥18॥

-: English Meaning :-

Noble indeed are all these; but the wise man, I deem, is the very Self; for, steadfast in mind, he resorts to Me alone as the unsurpassed goal.


गीता सातवाँ अध्याय श्लोक – १९

बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते ।

वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः ॥७-१९॥

-: अर्थात :  :-

बहुत जन्मों के अंत के जन्म में तत्व ज्ञान को प्राप्त पुरुष, सब कुछ वासुदेव ही हैं- इस प्रकार मुझको भजता है, वह महात्मा अत्यन्त दुर्लभ है॥19॥

-: English Meaning :-

At the end of many births, the man of wisdom comes to me, (realizing) that Vasudeva is the all: he is the noble-soul (Mahatman), very hard to find.


गीता सातवाँ अध्याय श्लोक – २०

कामैस्तैस्तैर्हृतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः ।

तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया ॥७-२०॥

-: अर्थात :  :-

उन-उन भोगों की कामना द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, वे लोग अपने स्वभाव से प्रेरित होकर उस-उस नियम को धारण करके अन्य देवताओं को भजते हैं अर्थात पूजते हैं॥20॥

-: English Meaning :-

Those whose wisdom has been led away by this or that desire resort to other Gods, engaged in this or that rite, constrained by their own nature.


गीता सातवाँ अध्याय श्लोक – २१

यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति ।

तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम् ॥७-२१॥

-: अर्थात :  :-

जो-जो सकाम भक्त जिस-जिस देवता के स्वरूप को श्रद्धा से पूजना चाहता है, उस-उस भक्त की श्रद्धा को मैं उसी देवता के प्रति स्थिर करता हूँ॥21॥

-: English Meaning :-

Whatever devotee seeks to worship with faith what form so ever, that same faith of his I make unflinching.


गीता सातवाँ अध्याय श्लोक – २२

स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते ।

लभते च ततः कामान्मयैव विहितान्हि तान् ॥७-२२॥

-: अर्थात :  :-

वह पुरुष उस श्रद्धा से युक्त होकर उस देवता का पूजन करता है और उस देवता से मेरे द्वारा ही विधान किए हुए उन इच्छित भोगों को निःसंदेह प्राप्त करता है॥22॥

-: English Meaning :-

Possessed of that faith he engages in the worship of that (form); thence he obtains his desires, these being indeed ordained by me.


गीता सातवाँ अध्याय श्लोक – २३

अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम् ।

देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्ता यान्ति मामपि ॥७-२३॥

-: अर्थात :  :-

परन्तु उन अल्प बुद्धिवालों का वह फल नाशवान है तथा वे देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं और मेरे भक्त चाहे जैसे ही भजें, अन्त में वे मुझको ही प्राप्त होते हैं॥23॥

-: English Meaning :-

That result indeed is finite, (which accrues) to those men of small intellect. Worshippers of Gods (Devatas) go to Gods (Devatas); My devotees come unto Me.


गीता सातवाँ अध्याय श्लोक – २४

अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धयः ।

परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम् ॥७-२४॥

-: अर्थात :  :-

बुद्धिहीन पुरुष मेरे अनुत्तम अविनाशी परम भाव को न जानते हुए मन-इन्द्रियों से परे मुझ सच्चिदानन्दघन परमात्मा को मनुष्य की भाँति जन्मकर व्यक्ति भाव को प्राप्त हुआ मानते हैं॥24॥

-: English Meaning :-

The foolish regard me as the un-manifested coming in manifestation, knowing not My higher, immutable, unsurpassed nature.


गीता सातवाँ अध्याय श्लोक – २५

नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः ।

मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम् ॥७-२५॥

-: अर्थात :  :-

अपनी योगमाया से छिपा हुआ मैं सबके प्रत्यक्ष नहीं होता, इसलिए यह अज्ञानी जनसमुदाय मुझ जन्मरहित अविनाशी परमेश्वर को नहीं जानता अर्थात मुझको जन्मने-मरने वाला समझता है॥25॥

-: English Meaning :-

I am not manifest to all, veiled (as I am) by Yoga-Maya. This deluded world knows not Me, unborn and imperishable.


गीता सातवाँ अध्याय श्लोक – २६

वेदाहं समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन ।

भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन ॥७-२६॥

-: अर्थात :  :-

हे अर्जुन! पूर्व में व्यतीत हुए और वर्तमान में स्थित तथा आगे होने वाले सब भूतों को मैं जानता हूँ, परन्तु मुझको कोई भी श्रद्धा-भक्तिरहित पुरुष नहीं जानता॥26॥

-: English Meaning :-

I know, O Arjuna, the past and the present and the future beings, but Me nobody knows.


गीता सातवाँ अध्याय श्लोक – २७

इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत ।

सर्वभूतानि संमोहं सर्गे यान्ति परन्तप ॥७-२७॥

-: अर्थात :  :-

हे भरतवंशी अर्जुन! संसार में इच्छा और द्वेष से उत्पन्न सुख-दुःखादि द्वंद्वरूप मोह से सम्पूर्ण प्राणी अत्यन्त अज्ञता को प्राप्त हो रहे हैं॥27॥

-: English Meaning :-

From the delusion of pairs caused by desires and aversion, O Bharata, all beings are subject to illusion at birth, O harasser of thy foes.


गीता सातवाँ अध्याय श्लोक – २८

येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम् ।

ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता भजन्ते मां दृढव्रताः ॥७-२८॥

-: अर्थात :  :-

परन्तु निष्काम भाव से श्रेष्ठ कर्मों का आचरण करने वाले जिन पुरुषों का पाप नष्ट हो गया है, वे राग-द्वेषजनित द्वन्द्व रूप मोह से मुक्त दृढ़निश्चयी भक्त मुझको सब प्रकार से भजते हैं॥28॥

-: English Meaning :-

Those mortals of pure deeds whose sin has come to an end, who are freed from the delusion of pairs, they worship Me with a firm resolve.


गीता सातवाँ अध्याय श्लोक – २९

जरामरणमोक्षाय मामाश्रित्य यतन्ति ये ।

ते ब्रह्म तद्विदुः कृत्स्नमध्यात्मं कर्म चाखिलम् ॥७-२९॥

-: अर्थात :  :-

जो मेरे शरण होकर जरा और मरण से छूटने के लिए यत्न करते हैं, वे पुरुष उस ब्रह्म को, सम्पूर्ण अध्यात्म को, सम्पूर्ण कर्म को जानते हैं॥29॥

-: English Meaning :-

Whoever resorting to Me strive for liberation from decay and death, they realise in full that Brahman, the individual Self and all action.


गीता सातवाँ अध्याय श्लोक – ३०

साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदुः ।

प्रयाणकालेऽपि च मां ते विदुर्युक्तचेतसः ॥७-३०॥

-: अर्थात :  :-

जो पुरुष अधिभूत और अधिदैव सहित तथा अधियज्ञ सहित (सबका आत्मरूप) मुझे अन्तकाल में भी जानते हैं, वे युक्तचित्तवाले पुरुष मुझे जानते हैं अर्थात प्राप्त हो जाते हैं॥30॥

-: English Meaning :-

Those who realize Me in the Adhibhuta (physical region), in the Adhidaiva (the divine region) and in the Adhiyajna (region of Sacrifice), realize Me even at the time of departure, steadfast in mind.


ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे ज्ञानविज्ञानयोगो नाम सप्तमोऽध्यायः ॥ ७ ॥

पढ़िए भगवद्गीता अध्याय 8 अर्थ सहित 

-: अर्थात :  :-

ॐ तत् सत् ! इस प्रकार ब्रह्मविद्या का योग करवाने वाले शास्त्र, श्रीमद्भगवद्गीता रूपी उपनिषत् में श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद रूपी ज्ञान विज्ञान योग नाम वाला सातवाँ अध्याय सम्पूर्ण हुआ॥

-: English Meaning :-

Om That is Truth! This completes the fifth chapter of Srimadbhagwad Gita, an Upanishat to unify one with Lord. This seventh chapter depicts the conversation between Sri Krishna and Arjun, and is named as “Knowledge and Science of Yoga”.

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