Bhagwadgeeta chapter 8 Shlok with meaning in hindi and english, Shreemad Bhagwat geeta chapter 8 | श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 8 अक्षर-ब्रह्म योग|
Chapter 8 of the Bhagavad Gita is titled "Akshara-Brahma Yoga". In this chapter, Lord Krishna imparts profound spiritual knowledge to Arjuna, explains in detail the nature of the eternal soul, the concept of the imperishable Absolute and the process of attaining liberation or moksha.
This chapter begins with Arjuna asking what is Brahman? What is spirituality? What is karma? What is called Adhibhuta and what is Adhidaiva.
Lord Krishna answers these questions of Arjuna and tells him the ways to attain the Supreme.
Bhagwadgeeta chapter 8 verses with meaning |
पढ़िए भगवद्गीता chapter7 हिंदी अर्थ सहित
In Chapter 8 of the Bhagavad Gita, Lord Krishna provides profound insights about the nature of the soul, the imperishable Absolute and the path to liberation. He emphasizes the importance of faith, devotion and meditation in attaining moksha, union with the Supreme Being and ultimate release from the cycle of rebirth.
भगवद गीता के अध्याय 8 का शीर्षक "अक्षर-ब्रह्म योग" है। इस अध्याय में, भगवान कृष्ण अर्जुन को गहन आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करते हैं, शाश्वत आत्मा की प्रकृति, अविनाशी पूर्ण की अवधारणा और मुक्ति या मोक्ष प्राप्त करने की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताते हैं।
इस अध्याय की शुरुआत अर्जुन के प्रश्न से होती है की की ब्रह्म क्या है? अध्यात्म क्या है? कर्म क्या है? अधिभूत नाम से क्या कहा गया है और अधिदैव किसको कहते हैं|
श्री कृष्ण अर्जुन के इन सवालों का जवाब देते हैं और परमेश्वर को प्राप्त करने के तरीको के बारे में बताते हैं |
भगवद गीता के अध्याय 8 में, भगवान कृष्ण आत्मा की प्रकृति, अविनाशी पूर्णता और मुक्ति के मार्ग के बारे में गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। वह परमात्मा के साथ मिलन और पुनर्जन्म के चक्र से अंतिम मुक्ति, मोक्ष प्राप्त करने में विश्वास, भक्ति और ध्यान के महत्व पर जोर देते हैं|
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गीता आठवाँ अध्याय श्लोक – १
अर्जुन उवाच
किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम ।
अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते ॥८-१॥
-: अर्थात :-
अर्जुन ने कहा- हे पुरुषोत्तम! वह ब्रह्म क्या है? अध्यात्म क्या है? कर्म क्या है? अधिभूत नाम से क्या कहा गया है और अधिदैव किसको कहते हैं॥1॥
-: English Meaning :-
Arjun says – What is that Brahman? What about the Individual Self (Adhyatma)? What is action (Karma), O Purushottama? And what is declared to be the physical region (Adhibhuta)?
गीता आठवाँ अध्याय श्लोक – २
अधियज्ञः कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्मधुसूदन ।
प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभिः ॥८-२॥
-: अर्थात :-
हे मधुसूदन! यहाँ अधियज्ञ कौन है? और वह इस शरीर में कैसे है? तथा युक्त चित्त वाले पुरुषों द्वारा अंत समय में आप किस प्रकार जानने में आते हैं॥2॥
-: English Meaning :-
And what is the divine region (Adhidaiva) said to be? And how and who is Adhiyajna (the Entity concerned with Sacrifice) here in this body, O Madhusudana, and how at the time of death art Thou to be known by the self-controlled?
गीता आठवाँ अध्याय श्लोक – ३
श्रीभगवानुवाच अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते ।
भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मसंज्ञितः ॥८-३॥
-: अर्थात :-
श्री भगवान ने कहा- परम अक्षर ‘ब्रह्म’ है, अपना स्वरूप अर्थात जीवात्मा ‘अध्यात्म’ नाम से कहा जाता है तथा भूतों के भाव को उत्पन्न करने वाला जो त्याग है, वह ‘कर्म’ नाम से कहा गया है॥3॥
-: English Meaning :-
The Lord says – Brahman is the Imperishable (Akshara), the Supreme. The Ego is said to be the Individual Self (Adhyatma, He who dwells in the body). The offering which causes the origin of physical beings is called action (Karma).
गीता आठवाँ अध्याय श्लोक – ४
अधिभूतं क्षरो भावः पुरुषश्चाधिदैवतम् ।
अधियज्ञोऽहमेवात्र देहे देहभृतां वर ॥८-४॥
-: अर्थात :-
उत्पत्ति-विनाश धर्म वाले सब पदार्थ अधिभूत हैं, हिरण्यमय पुरुष (जिसको शास्त्रों में सूत्रात्मा, हिरण्यगर्भ, प्रजापति, ब्रह्मा इत्यादि नामों से कहा गया है) अधिदैव है और हे देहधारियों में श्रेष्ठ अर्जुन! इस शरीर में मैं वासुदेव ही अन्तर्यामी रूप से अधियज्ञ हूँ॥4॥
-: English Meaning :-
The physical region (Adhibhuta) is the perishable existence and Purusha or the Soul is the divine region (Adhidaivata). The Adhiyajna (Entity concerned with Sacrifice) is Myself, here in the body, O best of the embodied.
गीता आठवाँ अध्याय श्लोक – ५
अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम् ।
यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः ॥८-५॥
-: अर्थात :-
जो पुरुष अंतकाल में भी मुझको ही स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है, वह मेरे साक्षात स्वरूप को प्राप्त होता है- इसमें कुछ भी संशय नहीं है॥5॥
-: English Meaning :-
And whoso, at the time of death, thinking of Me alone, leaves the body and goes forth, he reaches My being; there is no doubt in this.
गीता आठवाँ अध्याय श्लोक – ६
यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् ।
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः ॥८-६॥
-: अर्थात :-
हे कुन्ती पुत्र अर्जुन! यह मनुष्य अंतकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर त्याग करता है, उस-उसको ही प्राप्त होता है क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है॥6॥
-: English Meaning :-
Of whatever Being thinking at the end a man leaves the body, Him alone, O son of Kunti, reaches he by whom the thought of that Being has been constantly dwelt upon.
गीता आठवाँ अध्याय श्लोक – ७
तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च ।
मय्यर्पितमनोबुद्धि र्मामेवैष्यस्यसंशयम् ॥८-७॥
-: अर्थात :-
इसलिए हे अर्जुन! तू सब समय में निरंतर मेरा स्मरण कर और युद्ध भी कर। इस प्रकार मुझमें अर्पण किए हुए मन-बुद्धि से युक्त होकर तू निःसंदेह मुझको ही प्राप्त होगा॥7॥
-: English Meaning :-
Therefore at all times do thou meditate on Me and fight; with mind and reason fixed on Me thou shall doubtless come to Me alone.
गीता आठवाँ अध्याय श्लोक – ८
अभ्यासयोगयुक्तेन चेतसा नान्यगामिना ।
परमं पुरुषं दिव्यं याति पार्थानुचिन्तयन् ॥८-८॥
-: अर्थात :-
हे पार्थ! यह नियम है कि परमेश्वर के ध्यान के अभ्यास रूप योग से युक्त, दूसरी ओर न जाने वाले चित्त से निरंतर चिंतन करता हुआ मनुष्य परम प्रकाश रूप दिव्य पुरुष को अर्थात परमेश्वर को ही प्राप्त होता है॥8॥
-: English Meaning :-
Meditating with the mind engaged in the Yoga of constant practice, not passing over to any thing else, one goes to the Supreme Purusha, the Resplendent, O son of Pritha.
गीता आठवाँ अध्याय श्लोक – ९
कविं पुराणमनुशासितार मणोरणीयांसमनुस्मरेद्यः ।
सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूप मादित्यवर्णं तमसः परस्तात् ॥८-९॥
-: अर्थात :-
जो पुरुष सर्वज्ञ, अनादि, सबके नियंता (अंतर्यामी रूप से सब प्राणियों के शुभ और अशुभ कर्म के अनुसार शासन करने वाला) सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म, सबके धारण-पोषण करने वाले अचिन्त्य-स्वरूप, सूर्य के सदृश नित्य चेतन प्रकाश रूप और अविद्या से अति परे, शुद्ध सच्चिदानन्दघन परमेश्वर का स्मरण करता है॥9॥
-: English Meaning :-
Whoso meditates on the Sage, the Ancient, the Ruler, smaller than an atom, the Dispenser of all, of unthinkable nature, glorious like the Sun, beyond the darkness, (whoso meditates on such a Being) at the time of death, with a steady mind endued with devotion and strength of Yoga, well fixing the life-breath betwixt the eye-brows, he reaches that Supreme Purusha Resplendent.
गीता आठवाँ अध्याय श्लोक – १०
प्रयाणकाले मनसाचलेन भक्त्या युक्तो योगबलेन चैव ।
भ्रुवोर्मध्ये प्राणमावेश्य सम्यक् स तं परं पुरुषमुपैति दिव्यम् ॥८-१०॥
-: अर्थात :-
वह भक्ति युक्त पुरुष अन्तकाल में भी योगबल से भृकुटी के मध्य में प्राण को अच्छी प्रकार स्थापित करके, फिर निश्चल मन से स्मरण करता हुआ उस दिव्य रूप परम पुरुष परमात्मा को ही प्राप्त होता है॥10॥
-: English Meaning :-
गीता आठवाँ अध्याय श्लोक – ११
यदक्षरं वेदविदो वदन्ति विशन्ति यद्यतयो वीतरागाः ।
यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति तत्ते पदं संग्रहेण प्रवक्ष्ये ॥८-११॥
-: अर्थात :-
वेद के जानने वाले विद्वान जिस सच्चिदानन्दघनरूप परम पद को अविनाश कहते हैं, आसक्ति रहित यत्नशील संन्यासी महात्माजन, जिसमें प्रवेश करते हैं और जिस परम पद को चाहने वाले ब्रह्मचारी लोग ब्रह्मचर्य का आचरण करते हैं, उस परम पद को मैं तेरे लिए संक्षेप में कहूँगा॥11॥
-: English Meaning :-
That Imperishable Goal which the knowers of the Veda declare, which the self-controlled and the passion-free enter, which desiring they lead the godly life – That Goal will I declare to thee with brevity.
गीता आठवाँ अध्याय श्लोक – १२
सर्वद्वाराणि संयम्य मनो हृदि निरुध्य च ।
मूर्ध्न्याधायात्मनः प्राणमास्थितो योगधारणाम् ॥८-१२॥
-: अर्थात :-
सब इंद्रियों के द्वारों को रोककर तथा मन को हृद्देश में स्थिर करके, फिर उस जीते हुए मन द्वारा प्राण को मस्तक में स्थापित करके, परमात्म संबंधी योगधारणा में स्थित होकर जो पुरुष ‘ॐ’ इस एक अक्षर रूप ब्रह्म को उच्चारण करता हुआ और उसके अर्थस्वरूप मुझ निर्गुण ब्रह्म का चिंतन करता हुआ शरीर को त्यागकर जाता है, वह पुरुष परम गति को प्राप्त होता है॥12-13॥
-: English Meaning :-
Having closed all the gates, having confined mind in the heart, having fixed his life-breath in the head, engaged in firm Yoga, uttering Brahman, the one-syllable ‘Om’, thinking of Me, whoso departs, leaving the body, he reaches the Supreme Goal.
गीता आठवाँ अध्याय श्लोक – १३
ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन् ।
यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम् ॥८-१३॥
-: अर्थात :-
जो पुरुष ओऽम् इस एक अक्षर ब्रह्म का उच्चारण करता हुआ और मेरा स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है ॥13॥
-: English Meaning :-
Uttering the one-syllabled Om the Brahman and remembering Me, he who departs, leaving the body, attains to the Supreme Goal.
गीता आठवाँ अध्याय श्लोक – १४
अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः ।
तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः ॥८-१४॥
-: अर्थात :-
हे अर्जुन! जो पुरुष मुझमें अनन्य-चित्त होकर सदा ही निरंतर मुझ पुरुषोत्तम को स्मरण करता है, उस नित्य-निरंतर मुझमें युक्त हुए योगी के लिए मैं सुलभ हूँ, अर्थात उसे सहज ही प्राप्त हो जाता हूँ॥14॥
-: English Meaning :-
Whoso constantly thinks of me and long, to him I am easily accessible, O son of Pritha, to the ever-devout Yogin.
गीता आठवाँ अध्याय श्लोक – १५
मामुपेत्य पुनर्जन्म दुःखालयमशाश्वतम् ।
नाप्नुवन्ति महात्मानः संसिद्धिं परमां गताः ॥८-१५॥
-: अर्थात :-
परम सिद्धि को प्राप्त महात्माजन मुझको प्राप्त होकर दुःखों के घर एवं क्षणभंगुर पुनर्जन्म को नहीं प्राप्त होते॥15॥
-: English Meaning :-
Having attained to Me, they do not again attain birth, which is the seat of pain and is not eternal, they having reached highest perfection.
गीता आठवाँ अध्याय श्लोक – १६
आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन ।
मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते ॥८-१६॥
-: अर्थात :-
हे अर्जुन! ब्रह्मलोकपर्यंत सब लोक पुनरावर्ती हैं, परन्तु हे कुन्तीपुत्र! मुझको प्राप्त होकर पुनर्जन्म नहीं होता, क्योंकि मैं कालातीत हूँ और ये सब ब्रह्मादि के लोक काल द्वारा सीमित होने से अनित्य हैं॥16॥
-: English Meaning :-
(All) worlds including the world of Brahma are subject to returning again, O Arjuna; but, on reaching Me, O son of Kunti, there is no rebirth.
गीता आठवाँ अध्याय श्लोक – १७
सहस्रयुगपर्यन्त महर्यद्ब्रह्मणो विदुः ।
रात्रिं युगसहस्रान्तां तेऽहोरात्रविदो जनाः ॥८-१७॥
-: अर्थात :-
ब्रह्मा का जो एक दिन है, उसको एक हजार चतुर्युगी तक की अवधि वाला और रात्रि को भी एक हजार चतुर्युगी तक की अवधि वाला जो पुरुष तत्व से जानते हैं, वे योगीजन काल के तत्व को जानने वाले हैं॥17॥
-: English Meaning :-
They – those people who know day and night – know that the day of Brahma is a thousand yugas long and the night is a thousand yugas long.
गीता आठवाँ अध्याय श्लोक – १८
अव्यक्ताद्व्यक्तयः सर्वाः प्रभवन्त्यहरागमे ।
रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके ॥८-१८॥
-: अर्थात :-
संपूर्ण चराचर भूतगण ब्रह्मा के दिन के प्रवेश काल में अव्यक्त से अर्थात ब्रह्मा के सूक्ष्म शरीर से उत्पन्न होते हैं और ब्रह्मा की रात्रि के प्रवेशकाल में उस अव्यक्त नामक ब्रह्मा के सूक्ष्म शरीर में ही लीन हो जाते हैं॥18॥
-: English Meaning :-
From the Un-manifested all the manifestations proceed at the coming on of day; at the coming on of night they dissolve there only, in what is called the Un-manifested.
गीता आठवाँ अध्याय श्लोक – १९
भूतग्रामः स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते ।
रात्र्यागमेऽवशः पार्थ प्रभवत्यहरागमे ॥८-१९॥
-: अर्थात :-
हे पार्थ! वही यह भूतसमुदाय उत्पन्न हो-होकर प्रकृति वश में हुआ रात्रि के प्रवेश काल में लीन होता है और दिन के प्रवेश काल में फिर उत्पन्न होता है॥19॥
-: English Meaning :-
This same multitude of beings having come into being again and again, is dissolved at the coming on of night, not of their will, O son of Pritha and comes forth at the coming on of day.
गीता आठवाँ अध्याय श्लोक – २०
परस्तस्मात्तु भावोऽन्यो ऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातनः ।
यः स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति ॥८-२०॥
-: अर्थात :-
उस अव्यक्त से भी अति परे दूसरा अर्थात विलक्षण जो सनातन अव्यक्त भाव है, वह परम दिव्य पुरुष सब भूतों के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होता॥20॥
-: English Meaning :-
But that other eternal Un-manifested Being, distinct from this Un-manifested (Avyakta) – He does not perish when all creatures perish.
गीता आठवाँ अध्याय श्लोक – २१
अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस् तमाहुः परमां गतिम् ।
यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ॥८-२१॥
-: अर्थात :-
जो अव्यक्त ‘अक्षर’ इस नाम से कहा गया है, उसी अक्षर नामक अव्यक्त भाव को परमगति कहते हैं तथा जिस सनातन अव्यक्त भाव को प्राप्त होकर मनुष्य वापस नहीं आते, वह मेरा परम धाम है॥21॥
-: English Meaning :-
What is called the Un-manifested and the Imperishable, That, they say, is the highest goal; which having reached none return. That is My highest place.
गीता आठवाँ अध्याय श्लोक – २२
पुरुषः स परः पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया ।
यस्यान्तःस्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततम् ॥८-२२॥
-: अर्थात :-
हे पार्थ! जिस परमात्मा के अंतर्गत सर्वभूत है और जिस सच्चिदानन्दघन परमात्मा से यह समस्त जगत परिपूर्ण है , वह सनातन अव्यक्त परम पुरुष तो अनन्य भक्ति से ही प्राप्त होने योग्य है ॥22॥
-: English Meaning :-
Now, that Highest Purusha, O son of Pritha, within Whom all beings dwell, by Whom all this is pervaded, is attainable by exclusive devotion.
गीता आठवाँ अध्याय श्लोक – २३
यत्र काले त्वनावृत्ति मावृत्तिं चैव योगिनः ।
प्रयाता यान्ति तं कालं वक्ष्यामि भरतर्षभ ॥८-२३॥
-: अर्थात :-
हे अर्जुन! जिस काल में (यहाँ काल शब्द से मार्ग समझना चाहिए, क्योंकि आगे के श्लोकों में भगवान ने इसका नाम ‘सृति’, ‘गति’ ऐसा कहा है।) शरीर त्याग कर गए हुए योगीजन तो वापस न लौटने वाली गति को और जिस काल में गए हुए वापस लौटने वाली गति को ही प्राप्त होते हैं, उस काल को अर्थात दोनों मार्गों को कहूँगा॥23॥
-: English Meaning :-
Now, in what time departing, Yogins go to return not, as also to return, that time will I tell thee, O chief of the Bharatas.
गीता आठवाँ अध्याय श्लोक – २४
अग्निर्ज्योतिरहः शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम् ।
तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः ॥८-२४॥
-: अर्थात :-
जिस मार्ग में ज्योतिर्मय अग्नि-अभिमानी देवता हैं, दिन का अभिमानी देवता है, शुक्ल पक्ष का अभिमानी देवता है और उत्तरायण के छः महीनों का अभिमानी देवता है, उस मार्ग में मरकर गए हुए ब्रह्मवेत्ता योगीजन उपयुक्त देवताओं द्वारा क्रम से ले जाए जाकर ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। ॥24॥
-: English Meaning :-
Fire, light, day-time, the bright fortnight, the six months of the northern solstice – then departing, men who know Brahman reach Brahman.
गीता आठवाँ अध्याय श्लोक – २५
धूमो रात्रिस्तथा कृष्णः षण्मासा दक्षिणायनम् ।
तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तते ॥८-२५॥
-: अर्थात :-
जिस मार्ग में धूमाभिमानी देवता है, रात्रि अभिमानी देवता है तथा कृष्ण पक्ष का अभिमानी देवता है और दक्षिणायन के छः महीनों का अभिमानी देवता है, उस मार्ग में मरकर गया हुआ सकाम कर्म करने वाला योगी उपयुक्त देवताओं द्वारा क्रम से ले गया हुआ चंद्रमा की ज्योत को प्राप्त होकर स्वर्ग में अपने शुभ कर्मों का फल भोगकर वापस आता है॥25॥
-: English Meaning :-
Smoke, night-time and the dark fortnight, the six months of the southern solstice – attaining by these to the lunar light, the Yogin returns.
गीता आठवाँ अध्याय श्लोक – २६
शुक्लकृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते ।
एकया यात्यनावृत्ति मन्ययावर्तते पुनः ॥८-२६॥
-: अर्थात :-
क्योंकि जगत के ये दो प्रकार के- शुक्ल और कृष्ण अर्थात देवयान और पितृयान मार्ग सनातन माने गए हैं। इनमें एक द्वारा गया हुआ (अर्थात इसी अध्याय के श्लोक 24 के अनुसार अर्चिमार्ग से गया हुआ योगी।)– जिससे वापस नहीं लौटना पड़ता, उस परमगति को प्राप्त होता है और दूसरे के द्वारा गया हुआ ( अर्थात इसी अध्याय के श्लोक 25 के अनुसार धूममार्ग से गया हुआ सकाम कर्मयोगी।) फिर वापस आता है अर्थात् जन्म-मृत्यु को प्राप्त होता है॥26॥
-: English Meaning :-
These bright and dark Paths of the world are verily deemed eternal; by the one a man goes to return not, by the other he returns again.
गीता आठवाँ अध्याय श्लोक – २७
नैते सृती पार्थ जानन्योगी मुह्यति कश्चन ।
तस्मात्सर्वेषु कालेषु योगयुक्तो भवार्जुन ॥८-२७॥
-: अर्थात :-
हे पार्थ! इस प्रकार इन दोनों मार्गों को तत्त्व से जानकर कोई भी योगी मोहित नहीं होता। इस कारण हे अर्जुन! तू सब काल में समबुद्धि रूप से योग से युक्त हो अर्थात निरंतर मेरी प्राप्ति के लिए साधन करने वाला हो॥27॥
-: English Meaning :-
Knowing these paths, O son of Pritha, no Yogin is deluded; wherefore at all times be steadfast in Yoga, O Arjuna.
गीता आठवाँ अध्याय श्लोक – २८
वेदेषु यज्ञेषु तपःसु चैव दानेषु यत् पुण्यफलं प्रदिष्टम् ।
अत्येति तत्सर्वमिदं विदित्वा योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम् ॥८-२८॥
-: अर्थात :-
योगी पुरुष इस रहस्य को तत्त्व से जानकर वेदों के पढ़ने में तथा यज्ञ, तप और दानादि के करने में जो पुण्यफल कहा है, उन सबको निःसंदेह उल्लंघन कर जाता है और सनातन परम पद को प्राप्त होता है॥28॥
-: English Meaning :-
Whatever fruit of merit is declared to accrue from the Vedas, sacrifices, austerities and gifts – beyond all this goes the Yogin on knowing this; and he attains to the Supreme Primeval Abode.
पढ़िए भगवद्गीता अध्याय 9 अर्थ सहित
ॐ तत्सदिति श्री मद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्री कृष्णार्जुनसंवादे अक्षर ब्रह्मयोगो नामाष्टमोऽध्यायः ॥8॥
Bhagwadgeeta chapter 8 Shlok with meaning in hindi and english, Shreemad Bhagwat geeta chapter 8 | श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 8 कर्म योग|
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