Bhagwadgeeta chapter 10 Shlok with meaning in hindi and english, Shreemad Bhagwat geeta chapter 10 | श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 10 विभूति योग|
Chapter 10 of the Bhagavad Gita is titled "Vibhuti Yoga", which means the Yoga of Divine Glory. In this chapter, Lord Krishna reveals His divine manifestations and explains His omnipresence in the world. He describes Himself as the ultimate source of everything and the essence of all beings.
Lord Krishna explains that among the various manifestations of the Supreme Being He is the source of all beings and the ultimate cause of creation. He reveals His various divine qualities and attributes, emphasizing that He is the source of wisdom, power, and the power to rule. He also mentions that He is the origin of all celestial and natural phenomena, and that all beings depend on Him for their existence.
Krishna explains in detail His manifestations in the material and spiritual worlds. He explains that He is the essence of all living beings, the source of all demigods, and the inner controller of all living entities. He asserts that those who realize His divine manifestations and surrender to Him with devotion attain liberation and eternal union with Him.
Bhagwadgeeta chapter 10 verses with meaning |
भगवद गीता के अध्याय 10 का शीर्षक "विभूति योग" है, जिसका अर्थ है दिव्य महिमा का योग। इस अध्याय में, भगवान कृष्ण अपनी दिव्य अभिव्यक्तियों को प्रकट करते हैं और दुनिया में अपनी सर्वव्यापकता की व्याख्या करते हैं। वह खुद को हर चीज का अंतिम स्रोत और सभी प्राणियों का सार बताता है।
पढ़िए भगवद गीता अध्याय 9 अर्थ सहित
भगवान कृष्ण बताते हैं कि परमात्मा की विभिन्न अभिव्यक्तियों में से वे सभी प्राणियों का स्रोत और सृष्टि का अंतिम कारण हैं। वह अपने विभिन्न दिव्य गुणों और विशेषताओं को प्रकट करता है, इस बात पर जोर देता है कि वह ज्ञान, शक्ति और शासन करने की शक्ति का स्रोत है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया है कि वह सभी खगोलीय और प्राकृतिक घटनाओं का मूल हैं, और सभी प्राणी अपने अस्तित्व के लिए उन पर निर्भर हैं।
कृष्ण भौतिक और आध्यात्मिक दुनिया में अपनी अभिव्यक्तियों के बारे में विस्तार से बताते हैं। वह बताते हैं कि वह सभी जीवित प्राणियों का सार, सभी देवताओं का स्रोत और सभी जीवित संस्थाओं के आंतरिक नियंत्रक हैं। उनका दावा है कि जो लोग उनकी दिव्य अभिव्यक्तियों को महसूस करते हैं और भक्ति के साथ उनके प्रति समर्पण करते हैं, उन्हें मुक्ति मिलती है और उनके साथ शाश्वत मिलन होता है।
आइये अब पढ़ते हैं गीता के अध्याय दस को अर्थ सहित :
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक – १
श्रीभगवानुवाच भूय एव महाबाहो शृणु मे परमं वचः ।
यत्तेऽहं प्रीयमाणाय वक्ष्यामि हितकाम्यया ॥१०-१॥
-:अर्थात :-
श्री भगवान् बोले- हे महाबाहो! फिर भी मेरे परम रहस्य और प्रभावयुक्त वचन को सुन, जिसे मैं तुझे अतिशय प्रेम रखने वाले के लिए हित की इच्छा से कहूँगा॥1॥
-: Meaning In English :-
The Lord says – Again, O mighty-armed, listen to My Supreme word, which I, from a desire for thy well-being, shall speak to thee who art delighted.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक – २
न मे विदुः सुरगणाः प्रभवं न महर्षयः ।
अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः ॥१०-२॥
-:अर्थात :-
मेरी उत्पत्ति को अर्थात् लीला से प्रकट होने को न देवता लोग जानते हैं और न महर्षिजन ही जानते हैं, क्योंकि मैं सब प्रकार से देवताओं का और महर्षियों का भी आदिकारण हूँ॥2॥
-: Meaning In English :-
Neither the hosts of the Gods nor the Great Rishis know my origin; for I am the source of all the Gods and the Great Rishis.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक – ३
यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम् ।
असंमूढः स मर्त्येषु सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥१०-३॥
-:अर्थात :-
जो मुझको अजन्मा अर्थात् वास्तव में जन्मरहित, अनादि (अनादि उसको कहते हैं जो आदि रहित हो एवं सबका कारण हो) और लोकों का महान् ईश्वर तत्त्व से जानता है, वह मनुष्यों में ज्ञानवान् पुरुष संपूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है॥3॥
-: Meaning In English :-
He who knows Me as unborn and beginning-less, as the great Lord of the worlds, he among mortals is un-deluded, he is liberated from all sins.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक – ४
बुद्धिर्ज्ञानमसंमोहः क्षमा सत्यं दमः शमः ।
सुखं दुःखं भवोऽभावो भयं चाभयमेव च ॥१०-४॥
-:अर्थात :-
निश्चय करने की शक्ति, यथार्थ ज्ञान, असम्मूढ़ता, क्षमा, सत्य, इंद्रियों का वश में करना, मन का निग्रह तथा सुख-दुःख, उत्पत्ति-प्रलय और भय-अभय तथा अहिंसा, समता, संतोष तप (स्वधर्म के आचरण से इंद्रियादि को तपाकर शुद्ध करने का नाम तप है), दान, कीर्ति और अपकीर्ति- ऐसे ये प्राणियों के नाना प्रकार के भाव मुझसे ही होते हैं॥4-5॥
-: Meaning In English :-
Intelligence, wisdom, non-illusion, patience, truth, self-restraint, calmness, pleasure, pain, birth, death, fear and security; innocence, equanimity, contentment, austerity, beneficence, fame, shame, (these) different kinds dispositions of beings arise from Me alone.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक – ५
अहिंसा समता तुष्टिस् तपो दानं यशोऽयशः ।
भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधाः ॥१०-५॥
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक – ६
महर्षयः सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा ।
मद्भावा मानसा जाता येषां लोक इमाः प्रजाः ॥१०-६॥
-:अर्थात :-
सात महर्षिजन, चार उनसे भी पूर्व में होने वाले सनकादि तथा स्वायम्भुव आदि चौदह मनु- ये मुझमें भाव वाले सब-के-सब मेरे संकल्प से उत्पन्न हुए हैं, जिनकी संसार में यह संपूर्ण प्रजा है॥6॥
-: Meaning In English :-
The seven Great Rishis as well as the four ancient Manus, with their being in Me, were born of mind; and theirs are these creatures in the world.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक – ७
एतां विभूतिं योगं च मम यो वेत्ति तत्त्वतः ।
सोऽविकम्पेन योगेन युज्यते नात्र संशयः ॥१०-७॥
-:अर्थात :-
जो पुरुष मेरी इस परमैश्वर्यरूप विभूति को और योगशक्ति को तत्त्व से जानता है (जो कुछ दृश्यमात्र संसार है वह सब भगवान की माया है और एक वासुदेव भगवान ही सर्वत्र परिपूर्ण है, यह जानना ही तत्व से जानना है), वह निश्चल भक्तियोग से युक्त हो जाता है- इसमें कुछ भी संशय नहीं है॥7॥
-: Meaning In English :-
He who knows in truth this glory and power of Mine is endowed with unshaken Yoga; there is no doubt of it.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक – ८
अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते ।
इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः ॥१०-८॥
-:अर्थात :-
मैं वासुदेव ही संपूर्ण जगत् की उत्पत्ति का कारण हूँ और मुझसे ही सब जगत् चेष्टा करता है, इस प्रकार समझकर श्रद्धा और भक्ति से युक्त बुद्धिमान् भक्तजन मुझ परमेश्वर को ही निरंतर भजते हैं॥8॥
-: Meaning In English :-
I am the source of all; from Me everything evolves; thus thinking the wise worship Me, endowed with contemplation.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक – ९
मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम् ।
कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ॥१०-९॥
-:अर्थात :-
निरंतर मुझमें मन लगाने वाले और मुझमें ही प्राणों को अर्पण करने वाले (मुझ वासुदेव के लिए ही जिन्होंने अपना जीवन अर्पण कर दिया है उनका नाम मद्गतप्राणाः है।) भक्तजन मेरी भक्ति की चर्चा के द्वारा आपस में मेरे प्रभाव को जानते हुए तथा गुण और प्रभाव सहित मेरा कथन करते हुए ही निरंतर संतुष्ट होते हैं और मुझ वासुदेव में ही निरंतर रमण करते हैं॥9॥
-: Meaning In English :-
With their thought on me, with their life absorbed in Me, instructing each other and ever speaking of Me, they are content and delighted.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक – १०
तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम् ।
ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ॥१०-१०॥
-:अर्थात :-
उन निरंतर मेरे ध्यान आदि में लगे हुए और प्रेमपूर्वक भजने वाले भक्तों को मैं वह तत्त्वज्ञानरूप योग देता हूँ, जिससे वे मुझको ही प्राप्त होते हैं॥10॥
-: Meaning In English :-
To these, ever devout, worshipping Me with love, I give that devotion of knowledge by which they come to me.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक – ११
तेषामेवानुकम्पार्थ महमज्ञानजं तमः ।
नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता ॥१०-११॥
-:अर्थात :-
हे अर्जुन! उनके ऊपर अनुग्रह करने के लिए उनके अंतःकरण में स्थित हुआ मैं स्वयं ही उनके अज्ञानजनित अंधकार को प्रकाशमय तत्त्वज्ञानरूप दीपक के द्वारा नष्ट कर देता हूँ॥11॥
-: Meaning In English :-
Out of mere compassion for them, I abiding in their self, destroy the darkness born of ignorance, by the luminous lamp of wisdom.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक – १२
अर्जुन उवाच
परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान् ।
पुरुषं शाश्वतं दिव्यमा दिदेवमजं विभुम् ॥१०-१२॥
-:अर्थात :-
अर्जुन बोले- आप परम ब्रह्म, परम धाम और परम पवित्र हैं, क्योंकि आपको सब ऋषिगण सनातन, दिव्य पुरुष एवं देवों का भी आदिदेव, अजन्मा और सर्वव्यापी कहते हैं। वैसे ही देवर्षि नारद तथा असित और देवल ऋषि तथा महर्षि व्यास भी कहते हैं और आप भी मेरे प्रति कहते हैं॥12-13॥
-: Meaning In English :-
Arjun says –
The Supreme Brahman, the Supreme Light, the Supreme Purifier art Thou. All the Rishis declare Thee as Eternal, Divine Purusha, the Primal God, Unborn, Omnipresent; so said the divine sage Narada, as also Asita, Devala and Vyasa; and Thou Thyself also sayest (so) to me.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक –13
आहुस्त्वामृषयः सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा ।
असितो देवलो व्यासः स्वयं चैव ब्रवीषि मे ॥१०-१३॥
-
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक –14
सर्वमेतदृतं मन्ये यन्मां वदसि केशव ।
न हि ते भगवन्व्यक्तिं विदुर्देवा न दानवाः ॥१०-१४॥
-:अर्थात :-
हे केशव! जो कुछ भी मेरे प्रति आप कहते हैं, इस सबको मैं सत्य मानता हूँ। हे भगवन्! आपके लीलामय स्वरूप को न तो दानव जानते हैं और न देवता ही॥14॥
-: Meaning In English :-
I believe to be true all this which Thou says to me; for neither the Gods nor the Danavas, O Lord, know Thy manifestation.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक –15
स्वयमेवात्मनात्मानं वेत्थ त्वं पुरुषोत्तम ।
भूतभावन भूतेश देवदेव जगत्पते ॥१०-१५॥
-:अर्थात :-
हे भूतों को उत्पन्न करने वाले! हे भूतों के ईश्वर! हे देवों के देव! हे जगत् के स्वामी! हे पुरुषोत्तम! आप स्वयं ही अपने से अपने को जानते हैं॥15॥
-: Meaning In English :-
Thou Thyself knows Thyself as the Self, O Purusha Supreme, O Source of beings, O Lord of beings, O God of Gods, O Ruler of the world.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक –16
वक्तुमर्हस्यशेषेण दिव्या ह्यात्मविभूतयः ।
याभिर्विभूतिभिर्लोका निमांस्त्वं व्याप्य तिष्ठसि ॥१०-१६॥
-:अर्थात :-
इसलिए आप ही उन अपनी दिव्य विभूतियों को संपूर्णता से कहने में समर्थ हैं, जिन विभूतियों द्वारा आप इन सब लोकों को व्याप्त करके स्थित हैं॥16॥
-: Meaning In English :-
Thou should indeed tell, without reserve, of Thy divine Glories, by which Glories Thou remain pervading all these worlds.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक –17
कथं विद्यामहं योगिंस्त्वां सदा परिचिन्तयन् ।
केषु केषु च भावेषु चिन्त्योऽसि भगवन्मया ॥१०-१७॥
-:अर्थात :-
हे योगेश्वर! मैं किस प्रकार निरंतर चिंतन करता हुआ आपको जानूँ और हे भगवन्! आप किन-किन भावों में मेरे द्वारा चिंतन करने योग्य हैं?॥17॥
-: Meaning In English :-
How shall I, ever meditating, know Thee, O Yogin; in what several things, O Lord, art Thou to be thought of by Me?
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक –18
विस्तरेणात्मनो योगं विभूतिं च जनार्दन ।
भूयः कथय तृप्तिर्हि शृण्वतो नास्ति मेऽमृतम् ॥१०-१८॥
-:अर्थात :-
हे जनार्दन! अपनी योगशक्ति को और विभूति को फिर भी विस्तारपूर्वक कहिए, क्योंकि आपके अमृतमय वचनों को सुनते हुए मेरी तृप्ति नहीं होती अर्थात् सुनने की उत्कंठा बनी ही रहती है॥18॥
-: Meaning In English :-
Tell me again in detail, O Janardana, of Thy power and Glory, for there is no satiety for me in hearing the immortal.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक –19
श्रीभगवानुवाच हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतयः ।
प्राधान्यतः कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे ॥१०-१९॥
-:अर्थात :-
श्री भगवान बोले- हे कुरुश्रेष्ठ! अब मैं जो मेरी दिव्य विभूतियाँ हैं, उनको तेरे लिए प्रधानता से कहूँगा; क्योंकि मेरे विस्तार का अंत नहीं है॥19॥
-: Meaning In English :-
The Lord says – Now will I tell thee of My heavenly Glories, in their prominence, O best of the Kurus; there is no limit to My extent.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक –20
अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः ।
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ॥१०-२०॥
-:अर्थात :-
हे अर्जुन! मैं सब भूतों के हृदय में स्थित सबका आत्मा हूँ तथा संपूर्ण भूतों का आदि, मध्य और अंत भी मैं ही हूँ॥20॥
-: Meaning In English :-
I am the Self, O Gudakesa, seated in the heart of all beings; I am the beginning and the middle, as also the end, of all beings.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक –21
आदित्यानामहं विष्णु र्ज्योतिषां रविरंशुमान् ।
मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी ॥१०-२१॥
-:अर्थात :-
मैं अदिति के बारह पुत्रों में विष्णु और ज्योतियों में किरणों वाला सूर्य हूँ तथा मैं उनचास वायुदेवताओं का तेज और नक्षत्रों का अधिपति चंद्रमा हूँ॥21॥
-: Meaning In English :-
Of the Adityas I am Vishnu; of the radiances, the resplendent Sun; I am Marichi of the Maruts; of the asterisms, the Moon.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक –22
वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः ।
इन्द्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना ॥१०-२२॥
-:अर्थात :-
मैं वेदों में सामवेद हूँ, देवों में इंद्र हूँ, इंद्रियों में मन हूँ और भूत प्राणियों की चेतना अर्थात् जीवन-शक्ति हूँ॥22॥
-: Meaning In English :-
Of the Vedas I am the Sama-Veda, I am Vasava of the Gods and of the senses I am the mind, I am the intelligence in living beings.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक –23
रुद्राणां शंकरश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम् ।
वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम् ॥१०-२३॥
-:अर्थात :-
मैं एकादश रुद्रों में शंकर हूँ और यक्ष तथा राक्षसों में धन का स्वामी कुबेर हूँ। मैं आठ वसुओं में अग्नि हूँ और शिखरवाले पर्वतों में सुमेरु पर्वत हूँ॥23॥
-: Meaning In English :-
And of the Rudras I am Sankara, of the Yakshas and Rakshasas the Lord of wealth and of the Vasus I am Agni, of the mountains I am the Meru.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक –24
पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम् ।
सेनानीनामहं स्कन्दः सरसामस्मि सागरः ॥१०-२४॥
-:अर्थात :-
पुरोहितों में मुखिया बृहस्पति मुझको जान। हे पार्थ! मैं सेनापतियों में स्कंद और जलाशयों में समुद्र हूँ॥24॥
-: Meaning In English :-
And of the household priests of Kings, O son of Pritha, know Me the chief one, Brihaspati; of generals I am Skanda, of lakes I am the Ocean.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक –25
महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम् ।
यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः ॥१०-२५॥
-:अर्थात :-
मैं महर्षियों में भृगु और शब्दों में एक अक्षर अर्थात् ओंकार हूँ। सब प्रकार के यज्ञों में जपयज्ञ और स्थिर रहने वालों में हिमालय पहाड़ हूँ॥25॥
-: Meaning In English :-
Of the Great Rishis I am Bhrigu; of words I am the one syllable ‘Om’; of offerings I am the offering of Japa (silent repetition), of unmoving things the Himalaya.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक –26
अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः ।
गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः ॥१०-२६॥
-:अर्थात :-
मैं सब वृक्षों में पीपल का वृक्ष, देवर्षियों में नारद मुनि, गन्धर्वों में चित्ररथ और सिद्धों में कपिल मुनि हूँ॥26॥
-: Meaning In English :-
Of all trees (I am) the Asvattha and Narada of divine Rishis, Chitraratha of Gandharvas, the sage Kapila of the saints (Siddhas).
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक –27
उच्चैःश्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्भवम् ।
ऐरावतं गजेन्द्राणां नराणां च नराधिपम् ॥१०-२७॥
-:अर्थात :-
घोड़ों में अमृत के साथ उत्पन्न होने वाला उच्चैःश्रवा नामक घोड़ा, श्रेष्ठ हाथियों में ऐरावत नामक हाथी और मनुष्यों में राजा मुझको जान॥27॥
-: Meaning In English :-
Know Me among horses as Uchchaisravas, born of Amrita, of lordly elephants the Airavata and of men the king.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक –28
आयुधानामहं वज्रं धेनूनामस्मि कामधुक् ।
प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः सर्पाणामस्मि वासुकिः ॥१०-२८॥
-:अर्थात :-
मैं शस्त्रों में वज्र और गौओं में कामधेनु हूँ। शास्त्रोक्त रीति से सन्तान की उत्पत्ति का हेतु कामदेव हूँ और सर्पों में सर्पराज वासुकि हूँ॥28॥
-: Meaning In English :-
Of weapons I am the thunderbolt, of cows I am the Kamadhuk, I am the progenitor Kandarpa, of serpents I am Vasuki.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक –29
अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम् ।
पितॄणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम् ॥१०-२९॥
-:अर्थात :-
मैं नागों में (नाग और सर्प ये दो प्रकार की सर्पों की ही जाति है।) शेषनाग और जलचरों का अधिपति वरुण देवता हूँ और पितरों में अर्यमा नामक पितर तथा शासन करने वालों में यमराज मैं हूँ॥29॥
-: Meaning In English :-
And Ananta of snakes I am, I am Varuna of water-being and Aryaman of Pitris I am, I am Yama of controllers.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक –30
प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम् ।
मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम् ॥१०-३०॥
-:अर्थात :-
मैं दैत्यों में प्रह्लाद और गणना करने वालों का समय (क्षण, घड़ी, दिन, पक्ष, मास आदि में जो समय है वह मैं हूँ) हूँ तथा पशुओं में मृगराज सिंह और पक्षियों में गरुड़ हूँ॥30॥
-: Meaning In English :-
And Prahlada am I of Diti’s progeny, of reckoners I am Time and of beasts I am the lord of beasts and Vainateya of birds.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक –31
पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम् ।
झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी ॥१०-३१॥
-:अर्थात :-
मैं पवित्र करने वालों में वायु और शस्त्रधारियों में श्रीराम हूँ तथा मछलियों में मगर हूँ और नदियों में श्री भागीरथी गंगाजी हूँ॥31॥
-: Meaning In English :-
Of purifiers I am the wind, Rama of warriors am I, of fishes I am the shark, of streams I am the Ganges.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक –32
सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन ।
अध्यात्मविद्या विद्यानां वादः प्रवदतामहम् ॥१०-३२॥
-:अर्थात :-
हे अर्जुन! सृष्टियों का आदि और अंत तथा मध्य भी मैं ही हूँ। मैं विद्याओं में अध्यात्मविद्या अर्थात् ब्रह्मविद्या और परस्पर विवाद करने वालों का तत्व-निर्णय के लिए किया जाने वाला वाद हूँ॥32॥
-: Meaning In English :-
Of creations I am the beginning and the middle and also the end; of all knowledges I am the knowledge of the Self and Vada of disputants.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक –33
अक्षराणामकारोऽस्मि द्वन्द्वः सामासिकस्य च ।
अहमेवाक्षयः कालो धाताहं विश्वतोमुखः ॥१०-३३॥
-:अर्थात :-
मैं अक्षरों में अकार हूँ और समासों में द्वंद्व नामक समास हूँ। अक्षयकाल अर्थात् काल का भी महाकाल तथा सब ओर मुखवाला, विराट्स्वरूप, सबका धारण-पोषण करने वाला भी मैं ही हूँ॥33॥
-: Meaning In English :-
Of letters the letter ‘A’ am I and dvandva of all compounds; I am, verily, the inexhaustible Time; I am the All-faced Dispenser.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक –34
मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्भ वश्च भविष्यताम् ।
कीर्तिः श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा ॥१०-३४॥
-:अर्थात :-
मैं सबका नाश करने वाला मृत्यु और उत्पन्न होने वालों का उत्पत्ति हेतु हूँ तथा स्त्रियों में कीर्ति (कीर्ति आदि ये सात देवताओं की स्त्रियाँ और स्त्रीवाचक नाम वाले गुण भी प्रसिद्ध हैं, इसलिए दोनों प्रकार से ही भगवान की विभूतियाँ हैं), श्री, वाक्, स्मृति, मेधा, धृति और क्षमा हूँ॥34॥
-: Meaning In English :-
And I am all-seizing Death and the prosperity of those who are to be prosperous; of the feminine (I am) Fame, Fortune and Speech, Memory, Intelligence, Constancy, Endurance.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक –35
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम् ।
मासानां मार्गशीर्षोऽह मृतूनां कुसुमाकरः ॥१०-३५॥
-:अर्थात :-
तथा गायन करने योग्य श्रुतियों में मैं बृहत्साम और छंदों में गायत्री छंद हूँ तथा महीनों में मार्गशीर्ष और ऋतुओं में वसंत मैं हूँ॥35॥
-: Meaning In English :-
Of Samans also I am the Brihat-Saman of metres Gayatri am I, of months I am Margasirsha, of seasons the flowery season.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक –36
द्यूतं छलयतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम् ।
जयोऽस्मि व्यवसायोऽस्मि सत्त्वं सत्त्ववतामहम् ॥१०-३६॥
-:अर्थात :-
मैं छल करने वालों में जूआ और प्रभावशाली पुरुषों का प्रभाव हूँ। मैं जीतने वालों का विजय हूँ, निश्चय करने वालों का निश्चय और सात्त्विक पुरुषों का सात्त्विक भाव हूँ॥36॥
-: Meaning In English :-
I am the gambling of the fraudulent, I am the splendor of the splendid, I am victory, I am effort, I am the goodness of the good.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक –37
वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनंजयः ।
मुनीनामप्यहं व्यासः कवीनामुशना कविः ॥१०-३७॥
-:अर्थात :-
वृष्णिवंशियों में (यादवों के अंतर्गत एक वृष्णि वंश भी था) वासुदेव अर्थात् मैं स्वयं तेरा सखा, पाण्डवों में धनञ्जय अर्थात् तू, मुनियों में वेदव्यास और कवियों में शुक्राचार्य कवि भी मैं ही हूँ॥37॥
-: Meaning In English :-
Of the Vrishnis I am Vasudeva, of the Pandavas I am Dhananjaya and of the saints I am Vyasa, of the sages I am Usanas the sage.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक –38
दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम् ।
मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम् ॥१०-३८॥
-:अर्थात :-
मैं दमन करने वालों का दंड अर्थात् दमन करने की शक्ति हूँ, जीतने की इच्छावालों की नीति हूँ, गुप्त रखने योग्य भावों का रक्षक मौन हूँ और ज्ञानवानों का तत्त्वज्ञान मैं ही हूँ॥38॥
-: Meaning In English :-
Of punishers I am the scepter, of those who seek to conquer I am the polity and of things secret I am also silence, the knowledge of knowers am I.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक – 39
यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन ।
न तदस्ति विना यत्स्यान् मया भूतं चराचरम् ॥१०-३९॥
-:अर्थात :-
और हे अर्जुन! जो सब भूतों की उत्पत्ति का कारण है, वह भी मैं ही हूँ, क्योंकि ऐसा चर और अचर कोई भी भूत नहीं है, जो मुझसे रहित हो॥39॥
-: Meaning In English :-
And what is the seed of all being, that also am I, O Arjuna. There is no being, whether moving or unmoving, that can exist without me.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक – 40
नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां विभूतीनां परन्तप ।
एष तूद्देशतः प्रोक्तो विभूते र्विस्तरो मया ॥१०-४०॥
-:अर्थात :-
हे परंतप! मेरी दिव्य विभूतियों का अंत नहीं है, मैंने अपनी विभूतियों का यह विस्तार तो तेरे लिए एकदेश से अर्थात् संक्षेप से कहा है॥40॥
-: Meaning In English :-
There is no end of My heavenly Glories, O harasser of thy foes; but the details of My Glory have been declared only by way of instance.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक – 41
यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा ।
तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसंभवम् ॥१०-४१॥
-:अर्थात :-
जो-जो भी विभूतियुक्त अर्थात् ऐश्वर्ययुक्त, कांतियुक्त और शक्तियुक्त वस्तु है, उस-उस को तू मेरे तेज के अंश की ही अभिव्यक्ति जान॥41॥
-: Meaning In English :-
Whatever being is glorious, prosperous, or strong, that know thou to be a manifestation of a part of My Splendor.
गीता दसवाँ अध्याय श्लोक – 42
अथवा बहुनैतेन किं ज्ञातेन तवार्जुन ।
विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमे कांशेन स्थितो जगत् ॥१०-४२॥
-:अर्थात :-
अथवा हे अर्जुन! इस बहुत जानने से तेरा क्या प्रायोजन है। मैं इस संपूर्ण जगत् को अपनी योगशक्ति के एक अंश मात्र से धारण करके स्थित हूँ॥42॥
-: Meaning In English :-
But, of what avail to thee is this vast things being known, O Arjuna? I stand sustaining this whole world by one part (of Myself).
पढ़िए भगवद्गीता अध्याय 11
ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायांयोगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे विभूतियोगो नाम दशमोऽध्यायः ॥10॥
Bhagwadgeeta chapter 10 Shlok with meaning in hindi and english, Shreemad Bhagwat geeta chapter 10 | श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 10 विभूति योग|
Comments
Post a Comment